Review Laapataa Ladies : लापता लेडीज में स्वाभाविक तौर पर उत्पन्न होता है हास्य, संवाद भी बेहतर
Review Laapataa Ladies : खबर है कि आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लापता लेडिज’ भारत से ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजी जा सकती है। फिल्म कितनी साफगोई से बनाई गई है यह इस बात से समझा जा सकता है कि आमिर खान इस फिल्म प्रोड्यूसर हैं।
⇒सपन दुबे, बैतूल
Review Laapataa Ladies : खबर है कि आमिर खान की पूर्व पत्नी किरण राव द्वारा निर्देशित फिल्म ‘लापता लेडिज’ भारत से ऑस्कर अवार्ड के लिए भेजी जा सकती है। फिल्म कितनी साफगोई से बनाई गई है यह इस बात से समझा जा सकता है कि आमिर खान इस फिल्म प्रोड्यूसर हैं। फिल्म में पुलिस वाले का जो रोल रवि किशन निभाते दिख रहे हैं, यह रोल पहले खुद आमिर खान करना चाहते थे।
उन्होंने इस रोल के लिए ऑडिशन भी दिया। जब किरण और आमिर ने रवि किशन के ऑडिशन का टेप देखा तो उन्हें महसूस हुआ कि इस रोल के लिए आमिर से बेहतर रवि हैं। इससे पुष्टि होती है कि क्यों अमीर को मिस्टर परफेक्शनिस्ट कहा जाता है।
फिल्म की तारीफ हो रही है ऐसे में किरण राव पर सीन कॉपी करने का आरोप लगा है। अभिनेता अनंत महादेवन ने आरोप लगाया है कि लापता लेडीज में फिल्म ‘घूंघट के पट खोल’ से सीन्स कॉपी किए हैं। दोनो फिल्मों के प्लाट एक ही हैं जिसमें दुल्हने बदल जाती है।
महबूब खान ने औरत नाम से फिल्म बनाई और बाद में उन्होंने ही हूबहू इसी फिल्म को मदर इंडिया के नाम से दोबारा बनाया। एक लाइन की कहानी का मिलना संयोग हो सकता है परन्तु प्रस्तुतिकरण मायने रखता है। दाल वही होती है लेकिन दाल तडक़ा, दाल फ्राई के स्वाद में अंतर आ जाता है।
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कहानी को सुनाने का तरीका निर्देशक की बाजीगरी है। फिल्म लापता लेडिस में दुल्हने बदल जाती है जिसमें एक रूढ़ीवादी है और दूसरी प्रोग्रेसिव सोच की है। इत्फाक है कि पुराने ख्याल रखने वाली दुल्हन को आश्रय देने वाली, छोटी सी दुकान चलाते वाली, एक नेक और अनपढ़ औरत उन्नत सोच की ओर ले जाने का जतन करती है तो आधुनिक सोच रखने वाली दुल्हन जिस दूसरे दूल्हे के घर में रहती है उसे परंपरा के आग्रह के प्रति सजग किया जाता है।
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एक दुल्हन आगे पढऩा चाहती है और अपने बिछड़े लालची और अपराधी प्रवृत्ति वाले पति के पास जाना नहीं चाहती है। वह कहती है कि मेरा परीक्षा में अव्वल आने के क्या कोई मायने नहीं हैं? कई क्षेत्रों की तरह फिल्म इंडस्ट्री में भी महिला कलाकारों को कम धन दिया जाता है।
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पाकिस्तानी लेखिका सारा शगुफ्ता ने महिला सशक्तिकरण पर बहुत साहित्य लिखा, लेकिन वहां के अतिवादियों ने उनकी हत्या कर दी थी। सारा शगुफ्ता की एक शायरी का सार है कि ‘मर्दानगी का परचम लिए घूमने वालों औरत जमीन नहीं कुछ और भी है।’ रवि किशन को छोड़ दे तो फिल्म सितारा विहीन लो बजट सिनेमा है। भारत में दर्शकों की हास्य को लेकर समझ अभी तक अपरिपक्व है।
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ग्रैंड मस्ती और हाउसफुल जैसी अनेक फिल्में फूहड़ कॉमेडी के नाम पर धन कूटती है। कपिल शर्मा शो में आदमियों को औरत बनाकर द्विअर्थी संवाद से हंसाने की कोशिश की जा रही है और नेटफ्लिक्स पर शो आने के बाद सभी मर्यादांए लांघी जा रही हैं।
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तुर्रा यह है कि इस शो पर फैमली ड्रामा का तमगा चस्पा है। जो कि हास्य के लिए शो के किरदार एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं। मजाक उड़ाने और मजाक करने में फर्क होता है। गोया कि हास्य एक गंभीर सीन से भी ज्यादा संजीदा कलाकारी है।
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लापता लेडीस में कृत्रिम और हल्का हास्य उत्पन्न करने की चेष्टा नहीं की गई है, हास्य स्वाभाविक रूप से जन्म लेता है। फिल्म के संवाद बेहद सरल हैं जिसमें दूल्हा अपनी पत्नी की गुम होने की रपट लिखाने थाने जाते वक्त दहेज में मिली नई घड़ी को देखकर ग्रामीण पिता कहता है कि घड़ी उतार कर थाने जा, थाने में समस्या बताई जाती है हैसियत नहीं। यह संवाद व्यवस्था पर चोट करता है।
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मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नमक का दरोगा’ में नायक वंशीधर को रिश्वत के लिए प्रेरित करते हुए पिता कहते हैं नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है, निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। हमें जन्म से घुट्टी पिलाई जा रही है आर्थिक रूप से मजबूत व्यक्ति की समाज में अधिक स्वीकार्यता होती है। धनाढ्य विदूषक आज विचारक बने हुए हैं।
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फिल्म में थानेदार का ह्रदय परिवर्तन क्रिकेट की बीमर डिलीवरी (तेज रफ़्तार के साथ फेंकी गेंद बिना टप्पा खाए बल्लेबाज के कमर से ऊपर से गुजरती बेहद ख़तरनाक होती है और बल्लेबाज़ के सिर को चोटिल कर सकती है) की तरह है। लापता लेडीस को एक कल्ट फिल्म के तौर पर याद किया जाएगा।